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जीडीपी क्या हैं , जीडीपी की गणना कैसी की जाती हैं। GDP Kya Hai

GDP Kya Hai : जब भी हम देश की अर्थव्यवस्था की बात करते हैं, तब जीडीपी (GDP) एक अहम शब्द होता है। जीडीपी वह उपाय है जिससे किसी देश की आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन किया जाता है।

जीडीपी का इस्तेमाल किसी देश के विकास के स्तर को समझने के लिए किया जाता है। अगर एक देश की जीडीपी अच्छी होती है, तो माना जाता है कि उसकी अर्थव्यवस्था भी मजबूत है। लेकिन अगर जीडीपी में गिरावट आती है, तो इसका असर उस देश की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक रूप से पड़ता है।

इसके लिए अक्सर देश की सरकार की आर्थिक नीतियों को जिम्मेदार माना जाता है, क्योंकि सरकार ही इन नीतियों को तय करती है। गलत नीतियों से पूरे देश को बड़ा नुकसान हो सकता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जीडीपी क्या हैं। GDP Kya Hai किसी भी देश की जीडीपी की गणना कैसी की जाती हैं। यह देश के लिए क्यों जरूरी हैं।

आप इन सबके बारें में पूरी जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।

जीडीपी की शुरुआत कब हुई

जब विश्व के सभी देश आर्थिक मंदी का सामना कर रहे थे, तब उन्हें इस स्थिति से उबरने में लगभग 10 वर्ष का समय लगा। इसके बाद, देशों ने ऐसे तरीके खोजना शुरू किया जिनसे वे अपनी आर्थिक स्थिति का सही मूल्यांकन कर सकें।

उस समय कोई ठोस तरीका नहीं था जिससे देशों की आर्थिक स्थिति को मापा जा सके।

इसीलिए, विश्वभर की बैंकिंग कंपनियां, जिसमें वित्तीय संस्थान और बैंक शामिल थे, वे आगे आए उन्होंने यह भरोसा दिया कि वे देशों के आर्थिक विकास का हिसाब रखेंगे और इसे देश के सभी लोगों के सामने भी रखेंगे।

इस तरह, आर्थिक विकास को मापने का काम बैंकों को सौंपा गया।

हालांकि, उस समय कोई स्थायी और विश्वसनीय तरीका नहीं था, इसलिए बैंकों के ये प्रयास किसी भी देश की आर्थिक स्थिति का सही आकलन करने में असमर्थ रहे।

जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) का परिचय विश्व को पहली बार अमेरिकी अर्थशास्त्री साइमन ने दिया था।

1935 से 1944 के बीच, जब विश्व की बैंकिंग संस्थाएँ आर्थिक विकास को मापने के लिए किसी उपयुक्त शब्द की खोज में थीं, साइमन ने जीडीपी शब्द की परिभाषा प्रस्तुत की। इसके बाद, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने इस शब्द को अपनाया और इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया।

जीडीपी क्या है GDP Kya Hai

सबसे पहले, जीडीपी का पूरा नाम ‘ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट’ (Gross Domestic Product) है। यह किसी भी देश की आर्थिक स्थिति को मापने का एक महत्वपूर्ण पैमाना है, जिससे देश की आर्थिक स्थिति को आसानी से समझा जा सकता है।

आमतौर पर जीडीपी की गणना सालाना की जाती है, लेकिन भारत में इसकी गणना प्रत्येक तीन महीने (तिमाही) में की जाती है।

जीडीपी का आंकड़ा देश की अर्थव्यवस्था के मुख्य क्षेत्रों में उत्पादन की वृद्धि दर पर आधारित होता है।

पहले, जीडीपी में मुख्य रूप से कृषि, उद्योग और सेवाओं के तीन प्रमुख घटक शामिल थे। हाल के वर्षों में, इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग, और आईटी सर्विस सेक्टर जैसी विविध सेवाओं को भी शामिल किया गया है। इन सभी क्षेत्रों में उत्पादन की वृद्धि या ह्रास के औसत के आधार पर जीडीपी की दर निर्धारित की जाती है।

उदाहरण के तौर पर

जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) को एक सरल उदाहरण से समझते हैं।

मान लें कि 2020 में भारत में कुल 100 बोरी अनाज का उत्पादन हुआ, और प्रत्येक बोरी की कीमत ₹1000 है।
इस हिसाब से, भारत की जीडीपी इस प्रकार होगी: 100 बोरी × ₹1000 = ₹100,000। अब, यदि इन 100 बोरियों में से 50 बोरी सरकार द्वारा, 30 बोरी एक निजी कंपनी द्वारा और 20 बोरी एक विदेशी कंपनी द्वारा उत्पादित की गई हैं, तो जीडीपी की गणना कैसे की जाएगी?

जीडीपी की गणना में इस बात का महत्व नहीं होता कि उत्पादन किसने किया है।

महत्वपूर्ण यह है कि उत्पादन देश की सीमा के भीतर हुआ हो। इसलिए, चाहे उत्पादन किसी भी पक्ष ने किया हो, उसका कुल मूल्य देश की जीडीपी में जोड़ा जाता है।

यह समझना आसान है, लेकिन वास्तविकता में, किसी भी देश में सिर्फ अनाज ही नहीं, बल्कि अनेक प्रकार के उत्पाद और सेवाएं उत्पन्न होती हैं। इसलिए, अर्थशास्त्रियों ने जीडीपी की गणना को आसान बनाने के लिए इसे विभिन्न भागों में विभाजित किया है।

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जीडीपी कितने प्रकार की होती है

किसी भी देश की जीडीपी की मापने के लिए वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य की गणना की जाती है। बदलते समय के अनुसार इन वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में परिवर्तन होता रहता है, जिसके कारण जीडीपी का आंकड़ा भी बदलता रहता है। इसके लिए टैक्स के आधार पर कई अप्रत्यक्ष और औसत गणना की जाती है।

किसी भी देश की जीडीपी दो तरह से प्रस्तुत की जाती है। क्‍योंकि उत्पादन की कीमत महंगाई के साथ लगातार घटती बढ़ती रहती हैं।

यह पैमाना है कॉन्‍टेंट प्राइस का जिसके अंतर्गत जीडीपी की दर व उत्पादन का मूल्य एक आधार वर्ष में उत्पादन की कीमत पर तय होता है, जबकि दूसरा पैमाना करंट प्राइस है जिसमें उत्पादन वर्ष की महंगाई दर शामिल होती हैं।

स्थिर रेट (Constant Price) की जीडीपी: भारत का सांख्यिकी विभाग उत्पादन और सेवाओं के मूल्यांकन के लिए एक आधार वर्ष या बेस इयर तय करता है।

इस वर्ष की कीमतों को आधार बनाकर उत्पादन की कीमत और वृद्धि दर का आकलन किया जाता है। यह कांस्टैंट प्राइस जीडीपी है, जिसमें महंगाई का प्रभाव अलग रखा जाता है ताकि जीडीपी की सही दर को मापा जा सके।

वर्तमान रेट (Current Price) की जीडीपी: जब जीडीपी के उत्पादन मूल्य में महंगाई की दर को जोड़ दिया जाता है, तो हमें आर्थिक उत्पादन की मौजूदा कीमत मिलती है। इसमें स्थिर रेट जीडीपी को वर्तमान महंगाई दर से जोड़ा जाता है, जिससे हमें उत्पादन की वर्तमान बाजार कीमत का पता चलता है।

जीडीपी निकलने का आसान तरीका

अर्थशास्त्रियों के द्वारा जीडीपी को मापने के लिए एक ऐसा फार्मूला तैयार किया गया ताकि देश का कोई भी व्यक्ति आसानी से जीडीपी निकल कर देश की आर्थिक स्थिति का पता लगा सके

जीडीपी ( GDP ) = Consumption ( उपभोग ) + Investment ( कुल निवेश ) + Government Spending ( सरकारी खर्च )+ { Export (निर्यात) – Import (आयात) } Consumption (उपभोग)

Consumption (उपभोग)

“Consumption” का हिंदी में अनुवाद “उपभोग” होता है। यह शब्द देश के लोगों के व्यक्तिगत घरेलू व्यय को दर्शाता है, जिसमें भोजन, किराया, चिकित्सा व्यय और इसी प्रकार के अन्य घरेलू खर्चे शामिल होते हैं।

हालांकि, इसमें नए घर की खरीद को शामिल नहीं किया जाता है। यह घरेलू उपभोग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और देश की आर्थिक स्थिरता और विकास का आंकलन करते समय इसे महत्वपूर्ण माना जाता है।

Investment (कुल निवेश)

“Investment” का हिंदी में अनुवाद “निवेश” होता है। यह शब्द देश के घरेलू सीमाओं के भीतर माल और सेवाओं पर सभी संस्थानों द्वारा किए गए कुल खर्च को दर्शाता है। इसमें व्यक्तिगत, सरकारी, और निजी संस्थानों द्वारा किए गए निवेश शामिल होते हैं।

यह निवेश अर्थव्यवस्था के विकास और स्थिरता में महत्वपूर्ण योगदान देता है। निवेश की यह राशि नई संपत्तियों के निर्माण, व्यवसायिक विस्तार, और नई तकनीकों में निवेश सहित विभिन्न रूपों में हो सकती है।

Government Spending (सरकारी खर्च)

Government Spending” को हिंदी में “सरकारी खर्च” कहते हैं। इसमें सरकार द्वारा किए जाने वाले सभी प्रकार के खर्चे शामिल होते हैं।

उदाहरण के लिए, यह खर्च सरकारी परियोजनाओं में निवेश, सरकारी कर्मचारियों के वेतन, सुरक्षा और रक्षा संबंधी उपकरणों की खरीद, सार्वजनिक सेवाओं और अवसंरचना के विकास आदि पर होने वाला व्यय शामिल करता है।

सरकारी खर्च देश की आर्थिक सक्रियता और विकास का एक महत्वपूर्ण घटक होता है, जो समाज कल्याण, आर्थिक स्थिरता, और राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करता है।

Export (निर्यात)

Export” का हिंदी में अनुवाद “निर्यात” होता है। निर्यात में वह माल और सेवाएं शामिल होती हैं जो एक देश द्वारा उत्पादित की जाती हैं और फिर उन्हें दूसरे देशों के बाजारों में बेचा जाता है।

यह देश की जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विदेशी बाजारों में देशी उत्पादों की बिक्री से आय प्रदान करता है।

निर्यात से आर्थिक विकास, रोजगार सृजन, और विदेशी मुद्रा आर्जित करने में मदद मिलती है, जो एक देश की समग्र आर्थिक स्थिरता और विकास को सुदृढ़ बनाती है।

Import (आयात)

Import” का हिंदी में अनुवाद “आयात” है। आयात में वे सभी वस्तुएं और सेवाएं शामिल होती हैं जिनका उत्पादन हमारे देश की सीमा के बाहर किया गया है और फिर उन्हें हमारे देश में लाया जाता है।

जब जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) की गणना की जाती है, तब आयात को इससे घटा दिया जाता है क्योंकि आयात विदेशी उत्पादन का परिणाम होते हैं और जीडीपी का आकलन स्थानीय उत्पादन पर आधारित होता है।

आयात का उद्देश्य उन वस्तुओं और सेवाओं को प्राप्त करना होता है जो घरेलू स्तर पर या तो उपलब्ध नहीं हैं या जिनकी घरेलू उत्पादन लागत अधिक है। आयात से देश के बाजार में विविधता और प्रतिस्पर्धा बढ़ती है और उपभोक्ताओं को विकल्पों का विस्तार मिलता है।

भारतीय रिजर्व बैंक एक बार फिर जीडीपी ग्रोथ का सही अनुमान लगाने के लिए कुछ बदलाव करने जा रहा है .इस बार इसमें 12 सेक्टर जोड़े जा रहे हैं।

  • इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (IIP)- कंज्यूमर गुड्स
  • IIP- कोर सेक्टर
  • ऑटोमोबाइल बिक्री
  • नॉन-ऑयल-नॉन-गोल्ड आयात
  • निर्यात
  • रेल (मालवाहक) किराया
  • एयर कार्गो
  • विदेशी टूरिस्ट की आवक
  • सरकार के पास जमा
  • टैक्स नॉमिनल इफेक्टिव
  • एक्सचेंज रेट (NEER)
  • सेंसेक्स
  • बैंक क्रेडिट

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जीडीपी क्यों निकाली जाती है?

जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) वास्तव में एक देश के घरेलू उत्पादन की सेहत को मापने का एक महत्वपूर्ण पैमाना होता है। इसके माध्यम से हम उस देश की आर्थिक स्थिति का आकलन कर सकते हैं।

जीडीपी के आंकड़े से यह भी पता चलता है कि देश के किस सेक्टर में विकास हो रहा है और किसमें गिरावट आ रही है।

यह जानकारी सरकार के लिए नीति निर्माण और आर्थिक योजना बनाने में अत्यंत सहायक होती है। इससे सरकार को यह समझने में मदद मिलती है कि किन क्षेत्रों में निवेश और समर्थन की आवश्यकता है और कहाँ नीतियों में परिवर्तन की जरूरत है।

इस तरह, जीडीपी न केवल एक आर्थिक संकेतक है, बल्कि यह एक रणनीतिक उपकरण भी है जो सरकारों को देश के विकास को आगे बढ़ाने में मदद करता है।

जीडीपी कौन जारी करता है?

भारत में जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) आंकड़े जारी करने की जिम्मेदारी सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस (CSO) की होती है। CSO पूरे देश से आंकड़े इकट्ठा करता है । फिर उन्ही उन आंकड़ों के आधार पर जीडीपी का अनुमान लगाता है।
यह प्रक्रिया आर्थिक विकास की सही तस्वीर पेश करने के लिए महत्वपूर्ण है।

जहां कई देश सालाना आधार पर जीडीपी के आंकड़े जारी करते हैं, वहीं भारत में यह प्रक्रिया तिमाही आधार पर की जाती है, यानी प्रत्येक वर्ष में चार बार जीडीपी के आंकड़े जारी किए जाते हैं।

इससे भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति का अधिक बारीकी से अध्ययन करना संभव होता है, और यह सरकार व नीति निर्माताओं को अधिक सटीक और त्वरित निर्णय लेने में सक्षम बनाता है।

इसके अलावा, तिमाही आधार पर जीडीपी के आंकड़े जारी करने से आर्थिक प्रवृत्तियों और चुनौतियों की पहचान जल्दी होती है, जिससे समय पर उपयुक्त नीतिगत हस्तक्षेप संभव हो पाता है।

आम आदमी पर क्या पड़ता है असर?

एक देश की जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) का सीधा प्रभाव वहां के आम लोगों पर पड़ता है। जीडीपी में गिरावट का मतलब है कि उस देश में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन कम हो रहा है। इससे कुछ बातें का पता चलता हैं।

रोजगार में कमी: जब उत्पादन कम होता है, तो उद्योग और कंपनियां कम कर्मचारियों की जरूरत महसूस करती हैं, जिससे नौकरियों में कमी आती है।

निवेश में गिरावट: जीडीपी में गिरावट के कारण निवेशकों का विश्वास कम होता है, जिससे निवेश में कमी आती है। इसके परिणामस्वरूप, नई नौकरियां और व्यापारिक अवसर सृजित नहीं होते हैं।

औसत आय में कमी: जब उत्पादन और निवेश कम होते हैं, तो इससे लोगों की औसत आय में कमी आती है, जिससे जीवन स्तर प्रभावित होता है।

संसाधनों का आभाव: जीडीपी में गिरावट से आर्थिक संसाधनों की कमी हो सकती है, जिससे देश में बढ़ती आबादी के लिए उपलब्ध संसाधनों में कमी आती है।

इसलिए, जीडीपी न केवल एक आर्थिक संकेतक है, बल्कि यह देश के नागरिकों के जीवन स्तर और आर्थिक कल्याण का भी एक महत्वपूर्ण संकेतक है। सरकार और नीति निर्माताओं के लिए जीडीपी की जानकारी आर्थिक नीतियों और योजनाओं को तैयार करने में मददगार होती हैं।

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निष्कर्ष- GDP Kya Hai

इस लेख में आपने जीडीपी के बारें में विस्तार से जानकारी प्रदान की है, कि जीडीपी क्या हैं। GDP Kya Hai जीडीपी की शुरुआत कैसे हुई। जीडीपी की गणना कैसे करें।

यह जानकारी पाठकों को जीडीपी के महत्व और इसके आर्थिक प्रभाव को समझने में मदद करती है।

इस जानकारी को लेकर अगर आपका किसी भी प्रकार का कोई सवाल हैं तो आप कमेन्ट करके पूछ सकते हैं। आपको हमारी यह जानकारी कैसी लगी आप हमें कमेन्ट करके अपना फीडबैक जरूर दें। इस जानकारी को अपने सभी पढे लिखे दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ भी जरूर शेयर करें। ताकि उन्हे भी जीडीपी के बारें में सही जानकारी मिल सकें।

जीडीपी से जुड़े हुए कुछ सवाल जवाब

जीडीपी का जनक कौन है?

भारत में जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) की पहली गणना का श्रेय वास्तव में दादाभाई नौरोजी को जाता है, जिन्होंने 1876 में इसकी गणना की थी

जीडीपी की शुरुआत कब हुई?

जीडीपी की शुरुआत वास्तव में 18वीं शताब्दी के अंत में हुई थी, लेकिन इसे मुख्य रूप से 1934 में अमेरिकी अर्थशास्त्री साइमन कुज्नेत्स ने लोकप्रिय बनाया।

जीडीपी का पूरा नाम क्या हैं। GDP  Full Form in Hindi

जीडीपी (GDP) की फुल फॉर्म सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product) है।

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